गुज़र गए है दिन इस कदर तन्हाँ
साथी न कोई-बस मैं और ये जहां
हिसाब रखा नहीं उन तन्हाँ पलों का
तन्हाँ सफ़र को गुज़ारा है तन्हाँ
सूने कमरे सूनी दीवारों ने सुनी
मेरी वो दास्ताँ जो मैंने अकेले में बुनी
एक हसीं हमसफ़र के साथ का सफरनामा-
सुनाना था ज़िन्दगी को ...पर ज़िन्दगी से ठनी
रब के किस साजिश के तहत मैं तन्हाँ इस कदर
रिश्तों से महरूम खाया ठोकर दर-बदर