मंजिल ढूँढती हूँ
रास्तों के सफ़र में
ये बाज़ार की भीड़ है
मंजिल दिखेगी कहाँ ।।
तन्हाई में भी मैं
चल प ड़ती हूँ गर
अँधेरी इस दुनिया में
रौशनी है कहाँ ।।
जहां भी जाती हूँ
इस अंध जग में
परछाईं भी अपनी
पराई सी लगे ।।
निशाँ ढूँढती हूँ
मंजिल की मैं
रेतीली ज़मीन है
मिलेगी कहाँ ।।
आँधियों से लड़ने की
आदत तो हो गयी
पर कदम अब भी -
ढूँढती है तेरे निशाँ ।।
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मई 25, 2012
मंजिल ढूँढती हूँ .....
मई 11, 2012
ये मेरा तुम्हारा.........
ये मेरा तुम्हारा मधुर मिलन
हँसते हँसते भरे है नयन
मुस्कान - ए - हया लाये है शर्म
सुमधुर वाणी दे ह्रदय को मरहम
वो भोर के तारे भी देखे
बगिया में पुष्प अधखिले से
वातास भी छुपकर लहराए
माला बन कुसुम भी इतराए
सखियाँ सारी करे अभिनन्दन
देख दोनों का प्रेम अभिवादन
हंसिका से मुखरित हुआ कानन
कहीं मर न जाऊं देख ये प्रेम मिलन
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