पर आंच न आया तुम पर -
रहे बेखबर !
सूखे पत्ते सी फडफडाती रही यूं ही
और गीली आँखों ने चाँद -
सुखाया रातभर !
बुझी हुई आँखों से ज़िन्दगी को देखा इस कदर
चलती हुई ज़िन्दगी को -
पकडती रही बस रातभर !
काँटों से ख़्वाबों ने आँखों को खूब चुभोया है
आंसुओं ने सहलाया है पर -
उनींदे आँखों को रातभर !
शायद ज़िन्दगी की यही चाल है ---पता नहीं
आंसूं और ख्वाब ने हंगामा -
मचाया है रातभर !